शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

अद्भुत है अमरकंटक के जंगल की चट्टान

आस्था : अमरकंटक के जंगल में, ऊंचे पहाड़ पर एक चट्टान ऐसी है, जिसमें 12 महीने पानी रहता है। चट्टान में एक छेद है, उसमें हाथ डाल कर अंजुली भर जल निकाल सकते हैं। इस आश्चर्यजनक चट्टान को भृगु का कमंडल कहा जाता है। मेरे मित्र अशोक मरावी और मुकेश ने जब मुझे यह बताया गया, तो उस चट्टान को देखने की तीव्र जिज्ञासा मन में जागी। अगली सुबह इस अनोखी चट्टान को देखने जाने का तय किया। माँ नर्मदा मंदिर से लगभग 4 किमी दूर घने जंगल और ऊंचे पहाड़ पर भृगु कमंडल स्थित है। भृगु कमंडल तक पहुँचना कठिन तो नहीं है, लेकिन बाकी स्थानों की अपेक्षा यहाँ पहुँचने में थोड़ा अधिक समय और श्रम तो लगता ही है। कुछ दूरी तक आप मोटरसाइकिल या चारपहिया वाहन से जा सकते हैं, परंतु आगे का रास्ता पैदल ही तय करना होता है। भृगु कमंडल के लिए जाते समय आप एक और नैसर्गिक पर्यटन स्थल धूनी-पानी पर प्रकृति का स्नेह प्राप्त कर सकते हैं। यह स्थान रास्ते में ही पड़ता है। बहरहाल, हम मोटरसाइकिल से भृगु ऋषि की तपस्थली के लिए निकले। रास्ता कच्चा और ऊबड़-खाबड़ था। मोटरसाइकिल पर धचके खाते हुए हम उस स्थान पर पहुँच गए, जहाँ से पैदल आगे जाना था। घने जंगल के बीच स्थित भृगु कमंडल तक पहुँचने के लिए पहले पहाड़ उतर कर धूनी-पानी पहुँचे और फिर वहाँ से आगे जंगल में कीटों और पक्षियों का संगीत सुनते हुए पहाड़ चढ़ते गए। अमरकंटक के जंगलों में पेड़ों पर एक कीट सिकोड़ा पाया जाता है, जो एक विशेष प्रकार से टी-टी जैसी ध्वनि निकालता रहता है। शांत वन में पेड़ों पर झुंड में रहने वाले सिकोड़ा कीट जब टी-टी का सामूहिक उच्चार करते हैं तब विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। इस वर्ष जब भोपाल में भी यह ध्वनि सुनाई दी, तब मेरे मित्र हरेकृष्ण दुबोलिया ने उस पर समाचार बनाया था। उसके अनुसार यह कीड़ा हेमिपटेरा प्रजाति का है, जो पेड़ों पर रह कर उसकी छाल से पानी अवशोषित करता है और सूखी पत्तियों को अपना भोजन बनाता है। सिकोड़ा कीट उष्ण कटिबंधीय (गर्म) क्षेत्रों में पाया जाता है। इनके लिए अनुकूल तापमान 40 से 50 डिग्री सेल्सियस के बीच है। तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार जाता है, तो इनकी संख्या तेजी से बढ़ती है, किंतु तापमान जैसे ही 50 डिग्री सेल्सियस के पार जाता है, यह मरने लगते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें