शनिवार, 27 जुलाई 2019

ब्रह्मांड के सूक्ष्म रहस्य

ज्योतिष : भारत के आदि कालीन और वैदिक कालीन ग्रंथों में भी ब्रह्मांड की गुप्त बातों व रहस्यों के प्रति अनभिज्ञता प्रकट की गई है। मानव जीवन की आरंभिक सभ्यताओं का आज के मनुष्य के पास जो प्रामाणिक प्रबोध और तथ्य हैं, उनके आधार पर कहा जा सकता है कि मनुष्य ने हर बीतती सदी के साथ अनगिनत वैज्ञानिक उपलब्धियां अर्जित कीं और वह उसी के अनुरूप अपना दैनिक जीवन जीता रहा। परंतु इतना ज्ञान-विज्ञान प्राप्त करने और इतनी प्रगति कर लेने के बाद भी ब्रह्मांड के परम गुप्त सत्य तक पहुंचना संभव नहीं हो सका। इस युग के वैज्ञानिकों को लगता है कि वे केवल विज्ञान के प्रयोगों के आधार पर ब्रह्मांड के अंतिम सत्य तक पहुंच जाएंगे। वास्तव में ऐसा होना संभव नहीं होगा। पृथ्वी के अतिरिक्त जितने भी ग्रह, उपग्रह, खगोलीय पिंड और सामान्य मनुष्य की कल्पना से परे जाकर खोजे गए ब्रह्मांडीय आवरण हैं, वास्तव में ब्रह्मांड उतने में ही समाहित नहीं होता। वैदिक और आध्यात्मिक साधना के बाद भारतीय ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों व साधकों ने माना है कि ब्रह्मांड के वास्तविक केंद्र किसी भी जीव को पंचतत्वों से युक्त उसके जीवित तन के साथ कभी नहीं दिखाई दे सकते। पृथ्वी को छोड़ ब्रह्मांड के सभी वास्तविक केंद्र और स्थान केवल जीवात्मा को दृश्य-श्रव्य होते हैं। ब्रह्मांड के गुप्त दुर्गम अनुभव जीवात्मा को भी तब हो पाते हैं, जब वह भूलोक में अपनी पूरी जीवितावस्था में अध्यात्म वशीभूत हो सांसारिक कल्याण की भाव तरंगों से संबद्ध रही हो। मृत्यु के बाद मनुष्य अदृश्य ज्योति स्वरूप आत्मांश के रूप में अनंत पथ पर अग्रसर होता है। यह ब्रह्मांड का वही पथ है, जहां तक मनुष्य जीते जी कभी नहीं पहुंच पाता, चाहे कितनी ही वैज्ञानिक प्रगति कर ले। 
आत्मांश के रूप में ब्रह्मांड के इस पथ पर चलने का अवसर सभी जीवात्माओं को नहीं मिलता। इस पथ पर चलने की योग्यता तब मिलती है, जब हम पृथ्वी पर जीव के रूप में व्यतीत समयावधि में सत्कर्मों और परोपकार से जुड़े रहते हैं। सत्कर्मों, परोपकार, करुणामयी भावनाओं पर हितकारी संवेदनाओं और परार्थ में लगे जीव को मृत्यु के बाद ब्रह्मांड के उन अनंत व गुप्त स्थानों पर विचरण करने और अपने सत्कर्मों की योग्यता के आधार पर उनमें फिर से जन्म लेने का अवसर मिलता है, जो स्थान भूलोकी जीव की कल्पना से भी परे होते हैं। यदि भूलोक में जीवन अध्यात्म आधारित कल्याण भावना के साथ व्यतीत होता हुआ आध्यात्मिकता के शीर्ष स्थान को स्पर्श कर लेता है तो ऐसे जीव की आत्मा ब्रह्मांड के अनंत व गुप्त स्थानों के संचालक परमात्मा के परम स्थान में जगह पाती है। उसे जन्म-मरण के दुष्चक्र से मुक्ति मिलती है और वह स्थिर आत्मानुभव के साथ पारलौकिक आनंद प्राप्त करता रहता है। इसलिए सभी मनुष्यों को अपना जीवन पर-कल्याण व परोपकार में लगाकर आध्यात्मिक चिंतन-मनन करना चाहिए।

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